कुम्हार भारत, पाकिस्तान और नेपाल में पाया जाने वाला एक जाति या समुदाय है. इनका इतिहास अति प्राचीन और गौरवशाली है. मानव सभ्यता के विकास में कुम्हारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कहा जाता है कि कला का जन्म कुम्हार के घर में ही हुआ है. इन्हें उच्च कोटि का शिल्पकार वर्ग माना गया है. सभ्यता के आरंभ में दैनिक उपयोग के सभी वस्तुओं का निर्माण कुम्हारों द्वारा ही किया जाता रहा है. पारंपरिक रूप से यह मिट्टी के बर्तन, खिलौना, सजावट के सामान और मूर्ति बनाने की कला से जुड़े रहे हैं. यह खुद को वैदिक भगवान प्रजापति का वंशज मानते हैं, इसीलिए ये प्रजापति के नाम से भी जाने जाते हैं. इन्हें प्रजापत, कुंभकार, कुंभार, कुमार, कुभार, भांडे आदि नामों से भी जाना जाता है. भांडे का प्रयोग पश्चिमी उड़ीसा और पूर्वी मध्य प्रदेश के कुम्हारों के कुछ उपजातियों लिए किया जाता है. कश्मीर घाटी में इन्हें कराल के नाम से जाना जाता है. अमृतसर में पाए जाने वाले कुछ कुम्हारों को कुलाल या कलाल कहा जाता है. कहा जाता है कि यह रावलपिंडी पाकिस्तान से आकर यहां बस गए. कुलाल शब्द का उल्लेख यजुर्वेद (16.27, 30.7) मे मिलता है, और इस शब्द का प्रयोग कुम्हार वर्ग के लिए किया गया है.आइए जानते हैं कुम्हार जाति का इतिहास कुम्हार शब्द की उत्पत्ति कैैसे हुई?
आरक्षण की व्यवस्था के अंतर्गत कुम्हार जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.मध्य प्रदेश के छतरपुर, दतिया, पन्ना, सतना, टीकमगढ़, सीधी और शहडोल जिलों में इन्हें अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है; लेकिन राज्य के अन्य जिलों में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में सूचीबद्ध किया गया है. अलग-अलग राज्योंं में कुमार के अलग-अलग सरनेम है.
यह जाति भारत के सभी प्रांतों में पाई जाती है. हिंदू प्रजापति जाति मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में पाई जाती है. महाराष्ट्र में यह मुख्य रूप से पुणे, सातारा, सोलापुर, सांगली और कोल्हापुर जिलों में पाए जाते हैं.
कुम्हार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “कुंभ”+”कार” से हुई है. “कुंभ” का अर्थ होता है घड़ा या कलश. “कार’ का अर्थ होता है निर्माण करने वाला बनाने वाला या कारीगर. इस तरह से कुम्हार का अर्थ है- “मिट्टी से बर्तन बनाने वाला”.
भांडे शब्द का प्रयोग भी कुम्हार जाति के लिए किया जाता है. भांडे संस्कृत के शब्द “भांड” से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- बर्तन.
कुम्हार जाति का इतिहास लिखित नहीं है लेकिन धर्म ग्रंथों और इतिहास से संबंधित पुस्तकों में कुम्हारों के बारे में उल्लेख किया गया है. प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि बहुत प्रारंभिक काल से ही मिट्टी के बर्तन उपयोग में थे. इससे इस बात का पता चलता है कि कुम्हार जाति निश्चित रूप से एक प्राचीन जाति है. कुम्हार जाति की उत्पत्ति के बारे में अनेक मान्यताएं हैं. आइए उनके बारे में विस्तार से जाने.
वैदिक मान्यताओं के अनुसार, कुम्हार की उत्पत्ति त्रिदेव यानी कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा, पालनहार भगवान विष्णु और संहार के अधिपति भगवान शिव से हुई है. सृष्टि के आरंभ में त्रिदेव को यज्ञ करने की इच्छा हुई. यज्ञ के लिए उन्हें मंगल कलश की आवश्यकता थी. तब प्रजापति ब्रह्मा ने एक मूर्तिकार कुम्हार को उत्पन्न किया और उसे मिट्टी का घड़ा यानी कलश बनाने का आदेश दिया. कुम्हार ने ब्रह्मा जी से कलश निर्माण के लिए सामग्री और उपकरण उपलब्ध कराने की प्रार्थना की. जब भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चाक के रूप में उपयोग करने के लिए दिया. शिव जी ने धुरी के रूप में प्रयोग करने के लिए अपना पिंडी दिया. ब्रह्मा जी ने धागा (जनेऊ), पानी के लिए कमंडल और चक्रेतिया दिया. इन सभी सामग्री और उपकरण की मदद से फिर कुम्हार ने मंगल कलश का निर्माण किया जिससे यज्ञ संपन्न हुआ.
एक बार भगवान ब्रह्मा ने अपने पुत्रों के बीच गन्ना वितरित किया. सभी पुत्रों ने अपने अपने हिस्से का गन्ना खा लिया, लेकिन काम में लीन होने के कारण कुम्हार गन्ना खाना भूल गया. बाद में जिस गन्ने को उसने मिट्टी के ढेर के पास रख दिया था, अंकुरित होकर पौधे के रूप में विकसित हो गया. कुछ दिन बाद ब्रह्मा जी ने अपने पुत्रों से गन्ने मांगे तो कोई भी पुत्र गन्ना नहीं लौटा सका. लेकिन कुम्हार ने गन्ने का पूरा पौधा उन्हें भेंट कर दिया. इस बात से ब्रह्मा जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने कुम्हार के काम के प्रति निष्ठा देखकर उसे प्रजापति की उपाधि से पुरस्कृत किया. इस प्रकार कुम्हार समाज प्रजापति के नाम से जाने जाने लगे.
“कुम्हारों की उत्पत्ति की यह दंतकथा पंजाब, राजस्थान और गुजरात में ज्यादा प्रचलित है. मालवा क्षेत्र में भी कुम्हारों की उत्पत्ति के बारे में ऐसी ही कथा प्रचलित है. लेकिन यहां मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने गन्ने की जगह पान के पत्तों को वितरित किया था.”
कुछ लोगों का मत है जिस तरह से ब्रह्मा जी ने पंचतत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी (पदार्थ) से सृष्टि का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार से कुम्हार भी इन्हीं तत्वों से बर्तन बनाता है. कुम्हारों के रचनात्मक कला को सम्मान देने के लिए उन्हें प्रजापति कहा गया
स्रोत : सोशियल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार