श्री श्रीयादे माताजी का स्वर्णिम इतिहास
श्री श्रीयादे माताजी का स्वर्णिम इतिहास
पुराणों के अनुसार त्रेता युग के प्रथम चरण में हिरण्यकशिपु राज्य मूल स्थान (मुल्तान) पंजाब पाकिस्तान में स्थित है, के समय अधर्म का नाश करने के लिये एवं भक्ति की महिमा एवं उसके उद्भव के लिए नरहरि खण्ड के अझांर नगर में भगवान शंकर ने कुम्हार उडनकेशरी व माता उमा ने श्रीयादे देवी के रूप में असोज मास की शरदपूर्णिमा के दिन दिव्य रूप में इस धरती पर अवतरित हुए।
तत्कालिन राजा हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी का वरदान था कि न वह आकाश में मरेगा, ना जमीन पर, ना घर में, ना बाहर, ना दिन में, ना रात में, ना नर से, ना पशु से, ना अस्त्र से, ना शस्त्र से ऐसा वरदान पकार हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया एवं अपनी प्रजा पर अत्याचार करता था। उसने भगवान का नाम लेने वाले पर पाबंदी और धर्मकार्य पर रोक लगा दी।
दोनों पति-पत्नी ने राजाज्ञा की परवाह ना करते हुए,संयम एवं नियम से अपने ईष्ट भगवान की उपासना व भक्ति करते हुए अपना कुम्हारी धंधा (गांव कोल्या) में करने लगे। हमेशा की तरह एक दिन मिटटी के कच्चे बर्तन पकाने के लिए उन्होनें भटटी (न्यावडा) में लगा दिया और भटटी में अग्नि प्रवेश भी करा दी ।
इतने में कुछ देर बाद बिल्ली चिल्लाती हुई अपने बच्चे इधर-उधर ढूंढने लगी। बिल्ली की करूणामय आवाज सुनकर व उसकी घबराहट देखकर श्रीयादे माता ने अपनी पति श्री उडनकेशरी जी से निवेदन किया कि वह कच्चा कलश घडा कहां है, जिसमें बिल्ली ने बच्चे दिए थे। तब श्री उडनकेशरी जी ने कहा कि प्रिये ! वह मटका तो मैनें भूल से भटटी में पकाने हेतु रख दिया और उसमें अग्नि भी प्रज्जवलित कर दी है तथा निमाडे आधे से अधिक बर्तन पकने वाले है।
अपने पति से ऐसे वचन सुनकार श्रीयादे माता अत्यंत दुःखी हुई एवं उडनकेशरी जी भी अत्यंत चिंतित हुए। अग्नि में रखे बिल्ली के बच्चों की प्राण रक्षा के लिए भी दोनों पति-पत्नी भगवान विष्णु की उपासना व कीर्तन करता देख प्रहलाद व उनके साथियों को बडा आश्चर्य हुआ। राजकुमार प्रहलाद के साथ रहने वाले अंगरक्षकों ने उन्हें डांटते हुए कहा कि तुम राजा की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए ईश भक्ति क्यों कर रहे हो? हमारे राजा के सामने तो देवता व इन्द्र भी सर झुकाते है।
तब श्रीयादे माता ने राजकुमार प्रहलाद को समझाया कि हे भाई आपके राजा से कई गुना शक्ति व अन्नत शक्ति के भण्डार भगवान विष्णु है। हमारे भगवान विष्णु आग में बाग लगाने की शक्ति व सामर्थ्य रखते है। ऐसी शक्ति आपके स्वामी के पास नहीं है। तब श्रीयादे माता ने भक्त प्रहलाद को प्रज्जवलित भटटी (निंभा) में से बिल्ली के बच्चे को जीवन दान देकर भगवान की प्रतिति करवाई।
यह कार्य उनके द्वारा चैत्र मास की शीतला सप्तमी को किया गया अतएव इस दिन प्रहलाद को माता की कृपा से ब्रहम ज्ञान की प्राप्ति हुई एवं वे ईश्वर भक्ति में लगे। उन्होनें राजकुमार प्रहलाद को बताया कि आज भूलवश वह मटका निंभा में रखा गया है जिसमें बिल्ली के बच्चे थे। अब उस प्रचड अग्नि से उन्हें बचाने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना कर रहे है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उस दहकती अग्नि से भगवान बिल्ली को सकुशल बाहर निकाल लेंगे।
यह बात सुनकार राजकुमार प्रहलाद उवं उनके साथ्यिों को बहुत आश्चर्य हुआ व उन्हें देखने के लिए प्रहलाद व उनके साथी वही रूक गये फिर भी श्रीयादे माता व उनके पति पुनः हरिस्मरण करते हुए, बर्तन की भटटी खोलना प्रारम्भ कर दिया। भटटी में से बर्तनों को निकालते हुए उस बिल्ली के बच्चे वाले मटके की बारी आई तो राजकुमार ने देखा कि मटका बिल्कुल कच्चा है और उसमें से बिल्ली के बच्चे हर्षोन्मत होकर बाहर निकले। उस प्रचड अग्नि में से बिल्ली के बच्चों को जीवित निकलता देखकर प्रहलाद ने श्रीयादे माता से नवधा भक्ति व हरि कीर्तन का पाठ पढकर राजमहल को गए व भक्त प्रहलाद हो गये एवं हरिकीर्तन करने लगे।
जब यह बात उनके सेनापतियों एवं गुप्तचारों को मिली तो उन्होनें इसकी सूचना राजा को दी कि आपका पुत्र राजाज्ञा से विमुख होकर हरि कीर्तन करने लगा है। तब राजा ने अनेक प्रकारों से भक्त प्रहलाद को समझाया एवं उसके ना मानने पर उसे मृत्यु दण्ड देने का आदेश भी दिया । जिसमें हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद की हत्या करने के लिए आदेश दिया जिसके परिपालन में होलिका द्वारा भक्त प्रहलाद को मारने के लिए गोद में लेकर बैठ गयी।
क्यों उसे वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती ऐसा वरदान उसे प्राप्त था किन्तु मां श्रीयादे की अनुकम्पा से होलिका का वह वरदान फलीभूत नहीं हुआ एवं वह स्वयं उस अग्नि में भस्म हो गयी तभी से होलिका दहन का पर्व मनाने की परम्परा रही है। भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप की जीवन लीला समाप्त कर दी।
इस कथा में भक्त श्रीयादे माता प्रजापति भक्त प्रहलाद की आध्यात्मिक गुरू एवं भक्ति की प्रेरणा स्त्रोत के रूप में वर्णित है। उसके बाद श्रीयादे माता व उडनकेशरी ने अर्थात उमा महेश नृसिहं भगवान के दर्शन किए व अपने मूल रूप में कुम्भकार को दर्शन देकर जल (सूर्यकुण्ड) में प्रविष्ठ हो शिव धाम लौट गए।
मुल्तान पंजाब में स्थित यह नगर हिरण्यकश्यप की राजधानी तथा भक्त प्रहलाद का जन्म स्थान है। यही पर नृसिंह भगवान ने अवतार लिया था। नृसिंह चतुदर्शी को यहां पर मेला लगता है एवं राजकुमार प्रहलाद को तत्व दर्शन देने के कारण शीतला सप्तमी को श्रीयादे माता के सम्मान स्वरूप उनका स्मरण दिवस इसी दिन भव्य उत्साह के साथ प्रजापति समाज के द्वारा मनाया जाता है।
स्रोत : सोशियल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार